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कविता

वो बचा लेगी

शैलजा पाठक


तकलीफ शब्द सुनते ही
वो रोटी सी सफेद पड़ जाती

मुहब्बत सुनते गुलाबी सुर्ख रंग
उसकी पनीली आँखों में तैर उठता

घर का नाम लेते ही सरक कर
मेरे करीब आ जाती
दूर घरों की बत्तियों में
देखती अपना भी एक घर

वफा सुनते अपने ही नाखूनों से
कुरेदती अपनी हथेलियाँ
बच्चों का जिकर आते
उसके आँचल में एक मीठा
रंग भर जाता

वो मेरे पास होती इतना की बस
थाम लूँ उसे
मैंने जिंदगी के सारे रंग उसकी आँखों में देखे
जब मुझे कहना था प्यार है तू
मैंने कहा ख्वाब ...वो ख्वाब बन
चली गई

उसकी आँखों में देखे
तमाम रंगों के साथ मैं अपनी जिंदगी में
अकेला हूँ
नही समझा तब जिंदगी पास ही धड़क रही थी

वो आसमान बन गई
और मैं लिख रहा हूँ उन्हीं रंगों की स्याही में
डुबो कर हर दिन एक कविता
कभी तो पहुचे मेरी आवाज का रंग उस तक
और वो तमाम आवाजों वाले रंग के साथ

मेरी जिंदगी को गूँगा होने से बचा लेगी...
 


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